जिसमें हो नई उमंग और हो नई आशा, वही होती है दिल में बसने वाली मातृभाषा
नवम्बर सन् 2000 में छ्त्तीसगढ़ हमारे देश का 26 वाँ राज्य बना।नया राज्य बनने से जनता नया-नया सपने देखने लगी और सभी क्षेत्रों में विकास के लिए प्रयास शुरू हुए और इन्हीं प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रयास था हमारी मातृभाषा छतीसगढी़ को राज काज की भाषा बनाने का…
विषय है ! परिवर्तित व परिमार्जित का…
प्रत्येक लोक भाषा जब राजभाषा बनती है तो उसके समक्ष यह यक्ष प्रश्न होता है कि वह समय के साथ अपने आप को कितनी शीघ्रता से परिवर्तित व परिमार्जित करती है?अन्य भाषा के शब्दों को सुविधा की दृष्टि से किस सीमा तक आत्मसात करती है।
संघर्ष सफल हुआ..!
शुरूआत से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने के लिए बहुत पसीना बहाया गया, जिन्होंने मेहनत करीं, अपने सब काम काज, घर गृहस्थी की व्यवस्था छोड़-छाड़ के आखिर सफल हुए और छत्तीसगढ़ राज्य बना के दम लिया। 28 नवम्बर 2007 में छ्त्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से छत्तीसगढ़ राजभाषा (संशोधन) विधेयक 2007 पास किया।
छत्तीसगढ़ी को शासकीय कामकाज की भाषा बनाने की मुहिम जारी है..!
अब हमारे बड़ों का ध्यान छत्तीसगढ़ी को शासकीय कामकाज की भाषा बनाने पर है। छत्तीसगढ़ी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और इसका अपना व्याकरण है। छत्तीसगढ़ी भाषा का अपना लोकगीत, लोक कहानी और लोक संस्कृति है, जो किसी भी भाषा के अस्तित्व के लिए अनिवार्य तत्व हैं।
छत्तीसगढ़ी महतारी का है असीम आशीर्वाद…
धान का कटोरा कहलाने वाला हमारा छत्तीसगढ़ ऋतु परिवर्तन के संग लोक-जीवन के विविध रूप और जीवन की ख़ूबसूरती के दर्शन कराता है। प्राकृतिक सौंदर्य, वनस्पति, खनिज, स्वच्छ पर्यावरण, जल, जीव जंतु हमारी छत्तीसगढ़ महतारी ने हमे हर वो चीज दी है जो सुखद मानव जीवन के लिए जरूरी है वैसे ही हमे छत्तीसगढ़ महतारी ने छत्तीसगढ़ी भाषा भी दी है जिसको शासकीय कामकाज में महत्व दिलाने की जिम्मेदारी हम पूरी कर रहें है ।
हमारी सांस्कृतिक धरोहर..!
यहाँ ‘अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार...छत्तीसगढ़ महतारी की वन्दना को सुनके जहां श्रोता आनंद-विभोर हो जाते हैं वहीं छत्तीसगढ़ की कोठी के धान-धन,प्राकृतिक संपदा आत्म-विश्वास जगाते है,जीवन सिंगार करते हैं। खेत के लहलहाते फसल,लोक-जीवन में लोकगीत के धुन गुनगुनाते हर संघर्ष को सरल बना देते हैं। छेरछेरा, जसगीत, सुआ-गीत, डंडा-गीत, जंवारा-गीत, भोजली, करमा, ददरिया, पंथी-गीत, नाचा-गीत, राउत-नाचा के दोहा, फाग-गीत, बांस-गीत, देवारी-गीत, गौरा-गीत, बिहाव-गीत, लोक-गीत, लोक-नाटय आदि जीवन में विविधता के ख़ूबसूरती को बांधे रखते हैं।खान-पान के अलग ठाठ होते हैं।और इन सब भावों को प्रकट करने का माध्यम होती है मातृभाषा।
अभिन्न हृदय मातृभाषा को नमन हैं..!
मातृभाषा व्यक्ति की पहली भाषा होती है जो उसे जन्म से ही परिवार और समाज से सीखने को मिलती है। यह व्यक्ति की पहचान, संस्कृति, और भावनाओं का अभिन्न हिस्सा होती है। मातृभाषा का महत्व अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। प्रथम, मातृभाषा सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को सहज और प्राकृतिक बनाती है। मातृभाषा में शिक्षा देने से ही समाज का सर्वांगीण विकास संभव है।
लेकिन केवल स्वप्न देखने से सच नहीं होते,
इनको सच्चे स्वरूप में लाने के लिए प्रचलन और व्यवहार में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। पर शुरूआत कैसे करें? पहली गुरू मां होती है, बच्चों को घर में छत्तीसगढ़ी बोलने की आदत डालें और इसके लिए घर में बड़ों को छत्तीसगढ़ी बोलनी चाहिए। दूसरी बात जब भी हम आपस में बात करें ,ऑफिस में, बाजार में, मोबाइल में तब हमें राजभाषा छत्तीसगढ़ी में बात करनी चाहिए।
अनुकरणीय उदाहरण भी है…
आप देखतें है कि मराठी, तेलगू, पंजाबी, सिन्धी भाई एक दूसर से अपने भाषा में बात करते हैं और हम सिर्फ उन्हें देखते हैं।अपनी मातृभाषा सीखना थोड़े प्रयास से संभव है और सीखने से हमारा शब्द भंडार लगातार बढ़ता है। हम जैसे अपनी माता का मान-सम्मान करते हैं वैसा ही मान सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए जन-जन में होना चाहिए।हमारी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी अपनी विकास यात्रा में है।
मिलकर कदम बढ़ाना है मंत्रालय संचालनालय के कामकाज छत्तीसगढ़ी में करवाना है!
सामान्य रूप से छत्तीसगढ़ी को पढ़ने-लिखने में दिक्कत जरूर आती है लेकिन इतनी दिक्कत नहीं होती की मैदान छोड़ के भागे जाएं। इसके लिए हमारा अपना संकल्प बेहद जरूरी है।
हमारी जिम्मेदारी है…
सरकार खुद के बलबुते पर किसी भाषा को उन्नत नहीं कर सकती, इसके लिए लोक जागरण जरूरी है । इसमें साहित्यकारों और जनता की जवाबदारी बढ़ जाती है। इसके लिए जो जहाँ पर है उन्हें शपथपूर्वक छत्तीसगढ़ी अर्थात अपनी मातृभाषा की सेवा करनी चाहिए फिर चाहे वह मजदूर हो, किसान हो, चाह कोई सरकारी दफ्तर वाले हो या अन्य जगह काम करने वाले हो, छत्तीसगढ़ के विकास के लिए यह जरूरी है।
संवाद छत्तीसगढ़ी भाषा में…
भाषा सबको जोड़ने और सांस्कृतिक विकास के लिए ताकतवर माध्यम होती है। छत्तीसगढ़ी बोल-चाल की भाषा होनी चाहिए। अगर हिंदी, अंग्रेजी या अन्य भाषा की शब्दावली के प्रयोग से यदि छत्तीसगढ़ी की सम्प्रेषण-शक्ति बढ़ती है तो इसका स्वागत करना चाहिए। शब्द के मूल भाव पाठक तक पहुंचना चाहिए,अति अक्खड़ता भाषा की ताकत को कमजोर कर सकती है। हमारी बोलचाल सब जगह छत्तीसगढ़ी में होनी चाहिए।
अनिवार्यता और बाध्यता का महत्व है…
सरकारी और गैर सरकारी सभी स्तर में छत्तीसगढ़ी में पढ़ना-लिखना होना चाहिए।छत्तीसगढ़ी राजभाषा को राजकीय कामकाज की भाषा बनाने के दृढ़ संकल्पित होना पड़ेगा। इसके लिए वातावरण तैयार करना जरूरी है। यहाँ के साहित्यकार छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध करने के लिए लेखन करते रहे हैं।
छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है लेकिन और काम करने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ी भाषा के क्षेत्र विशेष में शब्दों के उच्चारण में भिन्नता और हिंदी के शब्दों के उपयोग की अधिकता दोनों ही छत्तीसगढ़ी भाषा को मानक भाषा बनाने की राह में बडी चुनौती है। अखिल भारतीय प्रशासनिक शब्दकोश में छत्तीसगढ़ी शब्दों को समाविष्ट करके छत्तीसगढ़ी भाषा के मूल शब्दों के साथ साथ अन्य भाषाओं के शब्दों को उच्चारण के आधार पर लिपिबद्ध कर छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्द भंडार को विस्तृत कर आधुनिकृत स्वरूप दिया जाना चाहिए। यह शब्दकोश छत्तीसगढ़ी भाषा को शासन के कार्यकलाप में प्रयोग की आधार भूमि का कार्य करेगा। जब छत्तीसगढ़ी भाषा सरकारी काम-काज के साथ गैर सरकारी संस्था में उपयोग होगी, हमारे लेख, पत्र कारिता, बोल चाल, में गति पकडेगी तब समझ में आएगा की यह तो संभावना के सागर में अभी शुरूआत है।
सार बात यही है कि… और अपेक्षा…
सरकार अपने स्तर पर बहुत कुछ कर सकती है। हम छत्तीसगढ़ में अपनी मातृ-भाषा का प्रयोग करने के लिए नहीं सोचेंगे तो क्या दूसरा कोई आकर हमारी भाषा का मान बढ़ायेगा ? छत्तीसगढ़ी के लिए पूरा समर्पण भाव होगा तभी ठोस परिणाम दिखेगा। आइए हम सब मिलके छत्तीसगढ़ी भाषा की सेवा करें जिससे छत्तीसगढ़ महतारी का माथा गर्व से और ऊंचा हो। जिस प्रकार माला को बनाने के लिए एक-एक फूल गूथना पड़ता है वैसे को ही हम सब का प्रयास होगा तभी छत्तीसगढ़ी भाषा का सुंदर स्वरूप चमकेगा। जब यह प्रचलन में आएगा तभी इसका जगमगाता स्वरूप देखने को मिलेगा। शुरू में सब कहेंगे इसका शब्द कोश नया है, इसके प्रचलन में व्यवहारिक कठिनाई है लेकिन अब शब्दकोश बन गये है। अब किसी को बोलने का मौका नहीं है और जब शासकीय कामकाज में भी यह उपयोग होगा तो इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी।

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