छत्तीसगढ के पावन भुइंँया, जिहाँ अरपा, पइरी , हसदेव नदी के धार हे, महानदी, शिवनाथ अऊ इंदिरावती के अपार जलरासि हे ।
छत्तीसगढ़ के" राजभासा" छत्तीसगढ़ी........
छत्तीसगढ राज बने 25 बछर होगे ,अऊ छत्तीसगढ़ी जनभासा ले राजभासा के दरजा पाय 18 बछर होगे ,सन् 2007 मँ छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग के गठन होय रहीस फेर आज तक न तो छत्तीसगढी भासा मँ पढई लिखई सुरु होइस अऊ न ही सरकारी कामकाज के भासा बन पाइस।ए राजभासा छत्तीसगढ़ी के कइसे सम्मान हे ?????
छत्तीसगढ़ी भासा के इतिहास......-
इतिहास साक्छी हे , छत्तीसगढ़ी ह खड़ी बोली के अग्रजा हे .... पहिली जनम लिये हे छत्तीसगढ़ी ह .....एखर जुन्ना नांँव हे "कोसली " अऊ हैहयवंस राज मँ गोड़ राजा " धुरवा " के चैतुरगढ या रतनपुर राज मं जनम होय रहीस ।
छत्तीसगढ़ी माँ महामाया के परसाद हे, रतनपुर एखर पालना ।
हमर "छत्तीसगढ़ी भासा ", संस्कृति के परान वायु .......-
हमर समाज के निरमान एसी मान्यता के अधार ले होय रहीस हे के हमर "छत्तीसगढ़ी भासा "ह हमर संस्कृति के परान हे ।
जइसे सरीर मँ बिना आतमा के कोई महत्व नहीं रहय ,वइसने बिना भासा के संस्कृति मृतप्राय समान हे ।
छत्तीसगढ़ के आतमा,वोखर भासा हे ।भासा बहांची तो संस्कृति घलव बंहाच जाही , यदि भासा मर जाही तब संस्कृति भी मर जाही ।
बिना छत्तीसगढी के भला छत्तीसगढ के का पहचान??? हर प्रांत के अपन चिनहारी भासा होथे …
जइसे बंगाल मँ बंगला , पंजाब मँ पंजाबी , गुजरात मँ गुजराती , महाराष्ट्र मँ मराठी , कर्नाटक मँ कन्नड़ ,असम मँ असमिया , तमिलनाडु मँ तमिल ,केरल मँ मलयालम भासा मँ सिक्छा के माध्यम हे , कामकाज के भासा हे ,वइसने छत्तीसगढ के मातृभासा छत्तीसगढ़ी हे ।
भासा , संस्कृति के संवाहक होथे , यदि भासा खतम हो जाही तो संस्कृति , भी समाप्त हो जाही ,साथ ही साथ वो राज्य के इतिहास , रीति-रिवाज खान-पान परंपरा , सब खतम हो जाही । बिना छत्तीसगढी भासा के छत्तीसगढ़ के का चिनहारी होही?
"महातारी - भासा छत्तीसगढ़ी "के कोई विकल्प ही नहीं हे ..........!
छत्तीसगढ़ के ८५% मइनखे मन के मातृभासा छत्तीसगढ़ी हे । छत्तीसगढ के लोक संस्कृति ,लोक साहित्य , लोक कला , अऊ लोक परंपरा छत्तीसगढ़ी मँ ही व्यक्त होथे , कोई दूसर भासा मं नही होवय ।
पृथक छत्तीसगढ राज्य आंदोलन के उद्देश्य छत्तीसगढ के लोक संस्कृति , लोक साहित्य अऊ इतिहास के संरक्छन समवरधन करना भी रहीस ।
छत्तीसगढ के अस्मिता के रक्षा करे के पवित्र उद्देश्य के साथ हमर पुरखा मन छत्तीसगढ राज के कल्पना भी करे रहींन ।
"पढई लिखई"अऊ "सरकारी कामकाज"के भासा बनंय छत्तीसगढी ........!
छत्तीसगढ राज्य बने २५ बछर होगे । छत्तीसगढ़ी भासा जनभासा ले राजभासा के दरजा पाय 18 बछर होगे।
छत्तीसगढ़ी भासायी मइनखे मन के चिनहारी छत्तीसगढी आय ।
फेर इँहा के सरकार न तो छत्तीसगढी भासा मँ पढई लिखई सुरु करवात हे, अऊ न छत्तीसगढ़ी भासा ल कोनों सरकारी कामकाज के भासा बनाइस ।
जबकि छत्तीसगढ़ी भासा के ब्याकरन ,हिंदी ब्याकरन ले पहिली के लिखाय हे । ब्याकरन के लिखोइया छत्तीसगढ के हीरालाल काव्योपाध्याय हें ।
छत्तीसगढ़ी भासा के लिपि देवनागरी हे,
सोध के बिसय हे छत्तीसगढ़ी मंँ , मुहावरा हे ,सब्दकोस हे ,प्रसासनिक सब्दकोस घलव हे , जेखर दू भाग राजभासा आयोग तीर पेटी मँ भराय माढ़े हे , जबकि हर कार्यालय मँ वोला भेजे के प्रबंध करना चाही ।
ए सब होय के बाद भी छत्तीसगढ़ मं छत्तीसगढ़ी भासा उपेक्षा के सिकार हे ।
"छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग" केवल पुस्तक छपवाय के बूता मँ लगे हे अऊ कवि सम्मेलन आयोजित करवाय मँ ।
१८ बछर ले जेन झूनझूना धरा के भुलवारे के उदीम राजभासा आयोग अऊ सरकार ह करे हे , वो छत्तीसगढ़िया मन आज २५ बछर के गबरू जवान होगे हें ,वोखर मन के सरीर मंँ महतारी के गोरस ह , लहू बन के बोहावत हे ,ए लहू , महतारी के करजा उतारे बर ,वोखर भासा अऊ संस्कृति के सम्मान बर धार बनके उबाल मारे बर धर ले ,एखर पहिली सरकार चेत करय ।
महतारी भासा छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले कम से कम पहिली कक्छा ले पाँचवी कक्छा तक सुरु करवाना ही हमर लक्ष्य हे ।
संविधान , सिक्छा नीति ,बइग्यानिक खोज ,सिक्छा के कानूनी अधिकार ,न्यायिक निर्णय , सहित सबो महान मइनखे मन घलव एही कहत हे के मातृभासा मँ सिक्छा ले लइका के सर्वांगीण विकास होथे , तभो ले सरकार के आँखी ,कान मुंदाय हे ।
भासा के नांँव ले के बेंदरा कूदई करोइया,भासायी माफिया ए बात उपर कछु बिचार कर अपन जुबान खोलही या अपने आप मँ मगन हो ए सब तमासा होवत देखत रहीं ।
छत्तीसगढ़िया सुवाभिमान ल कुचरे के कुत्सित चाल कहीं भारी न पड़ जाय ।एखर गंभीरता ल समझना परही ।
कहीं अफसर अऊ तानासाही प्रवृत्ति अऊ भाव वाले बाहरी तत्व मन ल ए डर ,भय तो नहीं सतावत हे के छत्तीसगढ़ मँ छत्तीसगढ़ी भासा मं पढई लिखई सुरु करवाय ले कहीं छत्तीसगढ़िया अस्मिता तो नहीं जाग जाही, छत्तीसगढ़िया मन के भीतर ..???
काबर के यदि कोई भी व्यक्ति के पहचान या चिनहारी खतम करना हे त वोखर भासा ल खत्म कर देना चाहिए ।
भासा खतम , चिनहारी खतम , संस्कृति खतम
छत्तीसगढ़ी भासा के संग खिचरी पढाई????
अभी स्कूल मँ छत्तीसगढ़ी अऊ हिंदी बिसय ,मिंझरा पढई लिखई होवत हे ।
बीस पाठ हिंदी अऊ पांँच पाठ छत्तीसगढ़ी भासा मँ ।
अब जेन लइका हिंदी ल सुरु के पढई लिखई के माध्यम बनाय हे , वोहर छत्तीसगढ़ी ल पढे लिखे बर कइसे रूचि बनाही ????
अब्बड़ दुख के बात हे के छत्तीसगढ़ी भासायी लइका पताल माने टमाटर तो जानत हे फेर टमाटर माने पताल, नई जानत हे ।
मतलब हिंदी मं ही पर्यायवाची सब्द दिये गे हवय । छत्तीसगढ़ी भासा के पढे बर हिंदी पर्यायवाची सब्द ।
छत्तीसगढ़ी भासा के सब्द के अर्थ छत्तीसगढ़ी भासा मं ही बताना चाही ,हिंदी मं नहीं ।
छत्तीसगढ़िया लइका ,हिंदी के २० पाठ पढ़त हे अऊ छत्तीसगढ़ी के ५ पाठ !!!
गुरुजी भी छत्तीसगढ़ी के पांच पाठ पढाय बर रूचि नहीं लेवय ।
सिक्छा के संवैधानिक अधिकार.....
मातृभासा के माध्यम से सिक्छा पाय के अधिकार हमन ल हमर संविधान के भाग १७ के अध्याय ४ के अनुच्छेद ३५० (क ) द्वारा निश्चित करे गे हवय ।
ए अधिकार हमन ल सन् १९५० ले मिले हवय ।
पर हम छत्तीसगढ़ी भासायी ए अधिकार ले अभी तक बंचित हवन । २००९ मँ निसुल्क अऊ अनिवार्य बाल सिक्छा अधिकार अधिनियम कानून बने हे ,जेमा अध्याय ५ के अंतर्गत २९ (च) के अनुसार सिक्छा के माध्यम मातृभासा ही होही ।
फेर का कारन हे के छत्तीसगढ़ी भासायी लइका मन ल वोमन के मौलिक अधिकार से बंचित करे जावत हे ????
छत्तीसगढ़ी भाषा बर ए सोचनीय, बिचारनीय हे
छत्तीसगढ के चिनहारी तो छत्तीसगढिच्च आय ,अब ढाई करोड़ मइनखे मन के महतारी भासा, आज भी अपन जगा पाय बर , स्थापित होय बर, पढाई लिखाई के माध्यम बने बर , सरकारी कामकाज के भासा बने बर , अपने ही राज मँ गोहरावत हे, कलपत हे , ।
कहीं सांत छत्तीसगढ़ अपन हक अऊ अधिकार बर लड़त असांत रुप न धर ले ?????

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