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बुधवार, 22 अक्टूबर 2025

आपका भी एक पेज छत्तीसगढ़ी में होना चाहिए… अधिवक्ता यामिनी मैथिल की अपील...

छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ की मुख्य शासकीय कामकाजी भाषा बनाने के लिए प्रयासरत अधिवक्ता यामिनी मैथिल ने छत्तीसगढ़ी भाषा में अपने डिजिटल पेज की शुरवात करते हुए लिखा है…

संगवारी हो..!

“पढ़ई लिखई के जोती, 
अंधियार दूर भगावय, 
गाँव शहर चमक उठथे, 
जब ज्ञान के दीप जगावय।”

छत्तीसगढ़ी में लिखी इन पक्तियों का अर्थ है: 

शिक्षा का प्रकाश अंधकार मिटाता है; 
जब ज्ञान के दीप जलते हैं, 
तो गाँव और शहर चमक उठते हैं।
छत्तीसगढ़ी को महत्व दिलवाने के लिए आवश्यक है कि, शासकीय कामकाज और शिक्षा व्यवस्था में छत्तीसगढ़ी भाषा का अनिवार्य सुनिश्चित करवाया जाय लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हमारा भी एक पेज छत्तीसगढ़ी भाषा में हो जिसके आधार पर हम अपनी मांग को व्यवहारिक स्वरूप दे सकें। 
इसलिए निवेदन है कि, आपका भी एक छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखकर छत्तीसगढ़ी भाषा का विस्तार, प्रचार प्रसार अभियान में सहयोग दें।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता यामिनी मैथिल 88151 19232


मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

छत्तीसगढ़ म जन नेता बने बर कुछ जरूरी बात मन ला जानना अउ अपनाना जरूरी हे। ए बात मन ला अपनाकेच, कोनो घलो गांव-गंवई म जन नेता बन सकथे:

🌾 जन नेता बने बर जरूरी बात मन

1. पूछ परख करत रहो! जनता संग जुड़े रहो!  

  •  गांव-गांव घूमो, मनखे मन के दुख-सुख ला समझो 
  • सभा, बैठक, तिहार म भाग लेव
  • छोटे एकार्यक्रम आयोजन करत रहो!

2. सुनई अउ समझई के कला रखो! अवहेलना के पीड़ा ला सहे के सीखो!

  •  मनखे मन के बात ला ध्यान से सुनव  
  • हर वर्ग के समस्या ला समझके समाधान खोजव
  • आप के विचार के मजाक बनाए वालन के हसीं उड़ाएं के सीखो 

3. साफ नियत अउ भरोसा बनावव! मूर्ख नो हन ये प्रमाणित करने के छोड़ो!कोनो झूठ या लालच म नइ पड़व  

  •  अपन काम म पारदर्शिता रखव
  • शासकीय योजना ला जान लो
  • अधिकारी से काम ले के तरीका सिख लो

4. छत्तीसगढ़ी म बात करई अउ लिखई सीखव अऊ दिल से दिल के सहमति बनाओ! 

  •  अपन भाषा म जनभावना ला व्यक्त कर सकथव  
  • भाषण, पर्चा, पोस्टर म छत्तीसगढ़ी के उपयोग करव
  • शासकीय योजना के बढ़ाई अऊ आलोचना छत्तीसगढ़ी भाषा में करो!
  • जनता से संवाद छत्तीसगढ़ी भाषा में करव 

5. जनहित के मुद्दा उठावव अऊ संस्कृति रीति रिवाज के विषय के साथ शासकीय योजना ला जोड़ कर बात करों

  • मजदूर, किसान, महिला, युवा के हक बर आवाज उठावव  
  •  RTI, मनरेगा, पेंशन, शिक्षा, स्वास्थ्य जइसन योजना मन के जानकारी बांटव
  • अवैध खनन अऊ कब्जा के विरोध करो
  • चिकित्सा व्यवसायियों की पंजीकृत स्थिति के पूछ परख करो

6. टीम बनावव अउ सबके संग काम करव सभो के विश्वास बन सके अइसन चर्चा के माहौल बनाओ 

  •  गांव के युवा, महिला समूह, शिक्षक मन संग मिलके काम करो  
  • अकेले नइ, सबके संग मिलके बदलाव लावव
  • विरोधी ला ओखरे काम करन दे अऊ ते हं अपन कार्य योजना से काम करत चल

7. संगठन अउ रणनीति के समझ रखव गोटीबाजी करे के मजा लेव

  •  जन आंदोलन, धरना, आवेदन, जनसुनवाई के तरीका जानव  
  • सही समय म सही तरीका अपनावव
  • विरोधी का गुमराह करे के गोटीबाजी करते चल

8. ईमानदारी अउ सेवा भाव रखव समय अनुसार निर्णय लेते चल

  •  नेता बने के मतलब सेवा करना हे, राज करना नइ ये बात ला समझ लो
  • मनखे मन ला अपन समझव, अपन नइ बनावव
  • विरोधी घलों जरूरी हे एला समझ के नेतागिरी कर 

9. डिजिटल साधन के उपयोग करई सीखव सोशल मीडिया का जरिए बनाव

  •  मोबाइल, व्हाट्सएप, सोशल मीडिया म जनहित के बात फैलावव  
  •  वीडियो, पोस्टर, स्लोगन बनाके जनजागरण करव
  • ऑनलाइन आलोचना करने से स्वयं ला बचाव 

10. छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करव छत्तीसगढ़ी ला प्राथमिकता दो 

  •  लोक गीत, कहिनी, तिहार म भाग लेव  
  • अपन संस्कृति म जनजागरण के रंग घोलव
  • अपन छत्तीसगढ़ के गुणगान से पाछु मत हट

अगर चाहव, तो मैं तोर बर एक जन नेता बने के कार्य योजना या जनजागरण करें बर विषयों के चयन कर शासकीय कार्यालय से जानकारी लेव बर आवेदन घलो बना सकंव। काबर नइ, तोर गांव के समस्या ऊपर एक जन अभियान के रूपरेखा बनाय के देखन? चल संगवारी एक बार नेतागिरी करके देखबो 

सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

"छत्तीसगढ़ी भाषा हमर संस्कृति ला बचाए बर काबर जरूरी हे" ए विषय के विश्लेषण प्रस्तुत करत हंव: मोर विचार ल पढ़ लो संगवारी हो..!

 

छत्तीसगढ़ी भाषा: हमर संस्कृति के आत्मा हरे, हमर अधिकार हे, हमर जिम्मेदारी घलो हे!

छत्तीसगढ़ी भाषा सिरिफ बात करे के जरिया नइ, ए हमर पहिचान, परंपरा, लोककला, अउ सामाजिक संबंध के गहिरा जड़ आय। जब भाषा जिंदा रहिथे, त संस्कृति घलो जिंदा रहिथे। ऐ सेती छत्तीसगढ़ी भाषा ला बचाए अउ बढ़ाए बर काम करना बहुत जरूरी हे। छत्तीसगढ़ के निवासी हन एकरसेती छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करें के जिम्मेदारी हरम आय ! जेनला हमला पूरा करना हे।

🌾 1. संस्कृति के वाहक अऊं आधार हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

छत्तीसगढ़ी म लोकगीत, कहिनी, बइठका, नाचा, करमा, सुआ, पंडवानी जइसन परंपरा हावय। ए सब म हमर भाषा के मिठास अउ भाव छिपे रहिथे। अगर भाषा कमजोर हो जाही, त ए परंपरा मन घलो धीरे-धीरे मिट जाही। एंकर सेती हमला समय रहित ले छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास करे बर पहल करे पढ़ई हमर छत्तीसगढ़ी भाषा ला महत्व देय का पढ़ई!

👪 2. सामाजिक जुड़ाव के जरिया मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

गांव-गांव म लोग छत्तीसगढ़ी म अपन भावना, दुख-सुख, परामर्श, अउ अपन अनुभव बांटथें। छत्तीसगढ़ी भाषा म अपनापन हे, जेन मनखे ला एक-दूसर संग जोड़े रखथे। हमन दुनिया के कोनो भी कोना रहान हमर संस्कृति से हमला छत्तीसगढ़ी भाषा ही जोड़थे! हमर छत्तीसगढ़ महतारी के माटी के महक हमर अंदर जिंदा रखते!

📚 3. शिक्षा अउ जागरूकता म उपयोगी हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

अगर सरकारी योजना, अधिकार, कानून, अउ जानकारी छत्तीसगढ़ी म मिलही, त आम जनता जल्दी समझ सकही। ए भाषा म प्रशिक्षण, पोस्टर, वीडियो बनाके जनजागरूकता बढ़ाय जा सकथे। एखरे सेती हमन छत्तीसगढ़ी भाषा प्रचार प्रसार अभियान चलाकर अपन योगदान देत हन अऊ मोर छत्तीसगढ़ महतारी के आत्मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला सरकारी कामकाज के भाषा बनाये बर समर्पित होकर काम करत हन।

🧠 4. बच्चा मन के सीखई म मददगार हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

बच्चा मन अपन माई-दादी के बोली म ये दुनिया ला समझे के शुरवात करथे एखर सेती लइका मन के पढ़ई ला छत्तीसगढ़ी मा समझाओ, त ओमन जल्दी समझथें, अपन संस्कृति संग जुड़थें, अउ लैका मन मा आत्मविश्वास बढ़थे। एकर सेती जरूरी हे कि प्रारंभिक शिक्षा मा छत्तीसगढ़ी भाषा होना चाहिए..!

🎭 5. मोर मनोभावना से संवाद मोर छत्तीसगढ़ी भाषा करथे!

छत्तीसगढ़ी भाषा ल महत्व देय के मंच मा हमर संस्कृति और लोककला के विस्तार होथे लोककला अउ रचनात्मकता के विकासछत्तीसगढ़ी म कविता, कहानी, नाटक, गीत लिखे जाथे। ए भाषा कलाकार मन ला अपन भाव प्रकट करे के मंच देथे।

🛡️ 6. छत्तीसगढ़ के अस्तित्व मोर छत्तीसगढ़ी भाषा बचा सकता हे!

भाषा बचाना मतलब संस्कृति बचाना हे अगर हमन छत्तीसगढ़ी ला स्कूल, मीडिया, सरकारी काम म जगह देबो, त हमर संस्कृति ला घलो सम्मान मिलही। भाषा के संरक्षण मतलब पीढ़ी दर पीढ़ी अपन परंपरा के जिंदा रखे के है। हम दुसर भाषा ला शिक्षण संस्थान मा जगह दें हन अऊं हमर छत्तीसगढ़ी ले अपन लइका मन से दूर कर दे हन। एखर सेती लइका मन मोर छत्तीसगढ़ी भाषा से दूर होत जात हे जो व्यथनीय हे 

✊ मोर मानना है गा,:

छत्तीसगढ़ी भाषा ला बचाना, बढ़ाना अउ सम्मान देना हमर जिम्मेदारी हे। ए सिरिफ बोली नइ, ए हमर आत्मा, हमर इतिहास, अउ हमर भविष्य आय। जब तक छत्तीसगढ़ी बोलाय जाथे, तब तक हमर संस्कृति के दीप जलत रहिथे।

संगवारी हो… मोर संग चलो..! 

हमन मन मिलके जनजागरूकता पोस्टर, वीडियो स्क्रिप्ट, लेख सामग्री घलो सोशल मीडिया में डालत जाबो– आऊं "छत्तीसगढ़ी के विकास प्रचार प्रसार अभियान" मा अपन योगदान देत जाबो "हमर बोली, हमर शान आय"। बतावव, मोर साथ देवों ना अप मन? मोर संग चलाओ ना आप मन?

मेह मोर महतारी भाखा बर समर्पित हूं गा मोर साथ आप मन भी देव गा! अमोल मालूसरे


सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दी, शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

बिंदुवार विवरण एवं पृष्ठभूमि:

भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लियाथा, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए:

क. इसके आरंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता।

ख. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

ग. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था।

नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया:

I. इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता।

II. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

III. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

IV. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।

 भारत सरकार ने अब तक निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है:

भाषा

अधिसूचना की तारीख

 

तमिल

12/10/2004

संस्कृत

25/11/2005

तेलुगु

31/10/2008

कन्नड़

31/10/2008

मलयालम

08/08/2013

उड़िया

01/03/2014

 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए 2017 में मंत्रिमंडल के लिए मसौदा नोट पर अंतर-मंत्रालयी परामर्श के दौरान, गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी। पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता है कि कितनी अन्य भाषाएं पात्र होने की संभावना है।

इस बीच, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए।

इस क्रम में, भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से निम्नलिखित मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

i. इसकी उच्च पुरातनता 1500-2000 वर्षों की अवधि में आरंभिक ग्रंथ/अभिलेखित इतिहास की है।

ii. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है।

iii. ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ।

iv. शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं के बाद के रूपों से अलग हो सकते हैं।

समिति ने यह भी सिफारिश की कि निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने के लिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा।

I. मराठी

II. पाली

III. प्राकृत

IV. असमिया

V. बंगाली

 कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य:

शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जाने वाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र शामिल हैं।

रोजगार सृजन सहित प्रमुख प्रभाव:

भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।

शामिल राज्य/जिले:

इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।

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एमजी/आरपीएम/केसी/एमपी प्रविष्टि तिथि: 03 OCT 2024 8:31PM by PIB Delhi(रिलीज़ आईडी: 2061731) आगंतुक पटल : 204

सोमवार, 25 मार्च 2024

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ राज्य के शासकीय कार्यालयों के कामकाज की भाषा बनाए के लिए किया जा रहा मेरा प्रयास... गेंदा फूल से प्रेरित होता है... जैसे गेंदा फूल में सभी को बांधे रखने की क्षमता है... वैसे ही छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलाने के लिए हम सभी को जुड़ना पड़ेगा... पढ़िए एक लेख...

 गेंदा फूल के महत्व को जानना और समझना आवश्यक तो नहीं है लेकिन अगर हम गेंदा फूल के महत्व को समझ लेंगे तो... मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश सरकार के कार्यालयों में कामकाजी भाषा का महत्व मिल जायेगा....

मेरी परिकल्पना गेंदा फूल और CVPPSA 

मेरे छत्तीसगढ़ के लिए गेंदा फूल का महत्व बेहद मायने रखता है क्योंकि छत्तीसगढ़ वासियों के संवेदनापूर्ण परिकल्पना ने ही ससुराल गेंदे फूल जैसी अर्थपूर्ण परिकल्पना को जन्म दिया है जिसके दो कारण है :

पहला : पारिवारिक एकता 

गेंदा फूल दरअसल एक फूल नहीं बल्कि बहुत से फूलों का एक समूह है। गोंदा फूल की वैज्ञानिक परिभाषा पर अगर जाये तो गेंदे के फूल की... प्रत्येक पंखुड़ी दरअसल पंखुड़ी नहीं बल्कि अपने आप में एक फूल होता है। उल्लेखनीय है कि, गेंदे का एक फूल तभी पूरा होता है या सुंदर तभी लगता है… जब उसकी हर पंखुड़ी विकसित होकर आपस में बँधी हुई हो, एक दूसरे से जुड़ी हुई हो और सभी फूलों का अपना अलग अस्तित्व भी नजर आता हो… ससुराल भी, एक ऐसी जगह है जिसमें बहुत से चरित्र हैं - सास, ससुर, देवर, ननद आदि; वास्तविक यह है कि, इनमे से कुछ संबंध स्वाभाविक तौर पर कड़वे हैं… तो कुछ मीठे भी हैं ! पर नई वधु यही उम्मीद लेकर ससुराल आती है कि, उसका ससुराल सुंदर होगा और सभी को वो एक साथ में लेकर चलेगी जैसे कि, गेंदे का फूल का संगठनात्मक अस्तित्व होता है। जो इतने सारे फूलों को एक साथ बांधकर सुंदरता, एकता, अखंडता का अनुभव करता है इसलिए भगवान के दरबार में गेंदा फूल का अग्रणी स्थान होता है और अंतिम यात्रा में भी मेरा गोंदा फूल ही मृत देह का साथी होता है ।

दूसरा कारण : भावनाएं !

छत्तीसगढ़ की स्मृतियों में रची बसी दूसरी भावनात्मक परिकल्पना के अनुसार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले युवक-युवतियाँ अपने प्रेमी/प्रेमिका को "गोंदा फूल" (वहाँ गेंदे को गोंदा कहते हैं) कह कर भी बुलाते हैं क्योंकि इसके खिलने का समय बसन्त होता है और इसे प्यार का मौसम भी माना जाता है। 

उल्लेखनीय है कि, उक्त दोनों प्रेरणादाई कल्पनायें मेरी स्मृतियों का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे ही परिकल्पनाओं ने मुझे छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहने के लिए प्रेरित करती रहती है ।

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए समर्पित मैं अमोल मालुसरे 

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